उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में सरकार की वर्ष 2013 की विनियमितीकरण नीति पर अपनी मुहर लगा दी है। यही नहीं सरकार ने विनियमतीकरण के लिये सेवा का दायरा बढ़ाकर पांच साल के बजाय 10 साल कर दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश से राज्य के हजारों कर्मचारी लाभान्वित हो सकेंगे और उन्हें विनियमित किया जा सकेगा। मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने यह आदेश गुरुवार 22 फरवरी को नरेन्द्र सिंह बिष्ट और अन्य चार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिकाओं की सुनवाई के बाद जारी किया लेकिन आदेश की प्रति आज प्राप्त हुई।
मामले के अनुसार राज्य सरकार ने वर्ष 2013 में सरकारी विभागों, निगमों, परिषदों एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं में काम करने वाले तदर्थ, संविदा कर्मियों के विनियमितीकरण के लिये एक नियमावली तैयार की। इसमें प्रावधान किया गया कि उमा देवी के आदेश के आलोक में वर्ष 2011 में बनायी नियमावली के तहत जो कर्मचारी विनियमित नहीं हो पाये उन्हें विनियमित किया जा सके।
सरकार का यह भी तर्क था कि चूंकि उत्तराखंड राज्य 09 नवम्बर, 2000 को अस्तित्व में आया और उसके कई वर्ष बाद भी सरकारी विभागों का गठन हुआ, इसलिये उनमें तैनात कर्मचारियों को वर्ष 2011 की नियमावली का लाभ नहीं मिल पाया। सरकार ने तब हालांकि 2013 की नियमावली में 10 वर्ष की अवधि को घटाकर पांच साल तक सीमित कर दिया था। सरकार की मंशा थी कि इससे वे कर्मचारी लाभान्वित हो सकेंगे जिन्होंने उत्तराखंड बनने के बाद 10 साल या उससे अधिक की सेवा पूरी कर ली है।