केकड़ी के विद्वानों ने दीपावली को लेकर की बैठक, पंचांगों की गणना के बाद एक नवंबर का दिन बताया शुभ

इस बार दीपावली मनाने के दिन को लेकर बन रही असमंजस की स्थिति के बीच केकड़ी के अति प्राचीन श्री चारभुजानाथ मंदिर के कथा व्यास और विभिन्न मंदिरों के पंडितों द्वारा बुधवार रात्रि को एक बैठक कर इस दुविधा पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। जिसमें पंचांग की गणनाओं को आधार मानकर 1 नवंबर को पड़ रही प्रदोष व्यापिनी अमावस्या पर दीपावली और लक्ष्मी पूजन के लिए प्रमाणित माना। वहीं, इससे पूर्व जयपुर में विद्वानों ने दीपावली 31 अक्टूबर को मनाने का निर्णय लिया है।

दरअसल, 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या होने से इस तरह की असमंजस की स्थिति सामने आई है, जिस पर केकड़ी के पंडितों ने एक बैठक में विभिन्न पंचांगों की गणनाओं कर 1 नवंबर को पड़ रही प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को ही दीपावली पर्व मनाए के लिए सही माना। चारभुजानाथ मंदिर के कथा व्यास और ज्योतिषाचार्य पंडित मुरलीधर दाधीच की अध्यक्षता में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में सभी पंडितों और विद्वतजनों ने इस पर सहमति जताई है।

उल्लेखनीय है कि जयपुर सहित देश के विभिन्न स्थानों पर 31 अक्टूबर को दीपावली पर्व मनाए जाने के निर्णय सामने आए हैं, जिसे लेकर केकड़ी के विद्वानों ने बैठक की। जिसके बाद उन्होंने बताया गया कि 90 प्रतिशत पंचांग ऐसे हैं जो 1 नवंबर को ही दीपावली और महालक्ष्मी पूजन की पुष्टि कर रहे हैं। शास्त्रों में दिए गए विभिन्न संदर्भों के अनुसार 1 नवंबर को पड़ रही प्रदोष व्यापिनी अमावस्या ही दीपावली के लिए उपयुक्त है। जब दो दिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या पड़ रही हो, तो अगले दिन आने वाली प्रदोष व्यापिनी अमावस्या, जिसमें तिथि पूर्ण हो रही हो वही मान्य मानी गई है। इस तरह से 1 नवंबर की अमावस्या तिथि को मान्य बताया गया है।

1 नवंबर को शाम 6:17 तक प्रदोष व्यापिनी अमावस्या
इन विद्वानों के अनुसार विभिन्न पंचांगों में स्पष्ट रूप से दीपावली का त्योहार और महालक्ष्मी पूजन 1 नवंबर को होने का उल्लेख दिया गया है। इसमें बताया गया है कि इस दिन अमावस्या तिथि पूरे दिन और शाम सूर्यास्त के बाद 6:17 तक रहेगी। इस तरह से प्रदोष व्यापिनी अमावस्या होने की वजह से दीपावली पर्व इस दिन मनाया जाना पूर्ण रूप से शास्त्र सम्मत है। इस दिन सूर्यास्त शाम 5:40 पर होगा। पंडित हेमंत शास्त्री, पंडित सत्यनारायण शास्त्री, पंडित पुरुषोत्तम शर्मा, पंडित सुनील शर्मा, पंडित घनश्याम पाराशर आदि के द्वारा तर्क दिया गया है कि जब दो दिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या हो, तो अगले दिन वाली प्रदोष व्यापिनी अमावस्या ऐसी स्थिति में मान्य होती है, जब दीपावली पर्व पड़ रहा हो।

क्षेत्र के सर्वाधिक प्रचलित पंचांगों में यह उल्लेख
जिले में सर्वाधिक लोकप्रिय पंचांग श्रीधरी पंचांग है जिसमें 1 नवंबर को अमावस्या तिथि और दीपावली पर्व का उल्लेख किया गया है। वहीं, प्रतिष्ठित पंचांग पंडित बंशीधर ज्योतिष पंचांग में 1 नवंबर को पड़ रही दीपावली को लेकर विस्तार से तर्क सहित विवरण दिया गया है। इसमें बताया गया है कि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी हो, तो अमावस्या दूसरे दिन ही मान्य है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु में दिए गए विवरण में कार्तिक अमावस्या दो दिन प्रदोष कालीन बनने पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहने वाली प्रदोष व्यापिनी कम से कम एक घटी वाली अमावस्या के दिन लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ बताया गया है। ज्योतिष सम्राट, श्री मार्तंड और जय मार्तंड पंचांग में भी 1 नवंबर को ही दीपावली और लक्ष्मी पूजन किया जाना बताया गया है। कथा व्यास पंडित मुरलीधर दाधीच और पंडित रामपाल शर्मा आदि ने कहा कि शुक्रवार अमावस्या के बीच आए प्रदोष काल में माता लक्ष्मी का पूजन करना श्रेष्ठ है। 1 नवंबर को शुद्ध रूप से प्रदोष काल है। पंडित रामचरण शास्त्री और पंडित हितेश व्यास ने कहा कि एक घटी से भी ज्यादा समय तक होने से और स्वाति नक्षत्र के संयोग से दीपावली और लक्ष्मी पूजन 1 नवंबर शुक्रवार को ही मनाने की शास्त्रोक्त सम्मति से पुष्टि होती है। बैठक में विद्वानों ने यह भी जिक्र किया कि अयोध्या व राजधानी दिल्ली सहित विभिन्न क्षेत्रों में तथा केकड़ी के आसपास के विभिन्न जिलों में भी 1 नवंबर को दीपावली पर्व और महालक्ष्मी पूजन को पंचांग आधारित मानते हुए इस दिन मनाए जाने की पुष्टि की जा रही है।

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