दिव्यधाम में रामलला के नूतन भव्य-दिव्य मंदिर में पहले दिन मंगलवार को सब कुछ नया हो गया है। सबसे पहले रामलला की पूजा-अर्चना में बड़ा बदलाव आया है। यह पूजा-अर्चना अब ‘रामोपासना’ के दायरे में आ गई है। पहले रामानंदीय परम्परा में पूजा-अर्चना सीमित थी। अब आगम-निगम के निर्दिष्ट व्यवस्थाओं का समावेश कर विशिष्ट पूजन की रीति निर्धारित हो गई है जो भविष्य में विभिन्न मंदिरों के लिए एक उदाहरण होगी।
नूतन मंदिर में प्रात: चार बजे भगवान की सेवा में पहली बार पहुंचे रामलला के अर्चक आचार्य संतोष तिवारी व प्रेम तिवारी ने भगवान का जागरण कराकर राजोपचार पूजन किया। इस दौरान सांकेतिक गंज दर्शन व गोदान कराया गया। पुनः भगवान को सूखे मेवे का भोग लगाकर मंगला आरती की गई। इसके उपरांत भगवान का सरयू जल से अभिषेक कर उन्हें स्नान कराया गया। इसके बाद भगवान का हल्दी-कुमकुम-चंदन से तिलक कर सुगंधित इत्र का लेप किया गया।
पुनः भगवान का विधिवत श्रृंगार हुआ। और उन्हें शिख से नख तक अलग-अलग आभूषणों से सुसज्जित किया गया। पुजारी संतोष तिवारी ने बताया कि प्रतिदिन भगवान को अलग-अलग रंग के वस्त्र धारण कराने का विधान है। फिर भी विशेष पर्व या उत्सव में उन्हें पीताम्बरी धारण कराया जाता है। इसी कड़ी में प्राण प्रतिष्ठा के लिए पीताम्बरी धारण कराई गई थी जबकि मंगलवार को रामलला को लाल रंग परिधान धारण कराया गया। इसके बाद रबड़ी व पेड़ा का भोग लगाकर सुबह साढ़े छह बजे श्रृंगार आरती की गई। इसके साथ ही दर्शन का क्रम शुरू हो गया। इसी तरह मध्याह्न भगवान को विविध व्यंजनों का भोग लगा लेकिन श्रद्धालुओं की व्यग्रता के कारण उन्हें विश्राम नहीं मिला।