उत्तराखंड की वर्तमान देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्र के लोग वर्ष 2009 से पहले टिहरी लोकसभा सीट के लिए मतदान करते थे। टिहरी से आठ बार सांसद रहे रियासत के अंतिम शासक मानवेंद्र शाह का इस क्षेत्र में खासा प्रभाव रहा था।
1999 के आम चुनाव में देवप्रयाग बस अड्डे पर उनकी सभा आयोजित हुई थी। इसमें हर वक्ता ने महाराजा को मंत्री बनाए जाने की वकालत की, लेकिन जब महाराजा मानवेंद्र के बोलने की बारी आई तो उन्होंने सभी को खामोश कर दिया।
मानवेंद्र ने कहा कि हर कोई मुझे मंत्री बनाने पर तुला है। मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है। मैं तो राजा हूं, मंत्री क्यों बनूंगा? बोलांदा बदरी (बोलते बदरीनाथ) कहे जाने वाले मानवेंद्र शाह अपने प्रचार में बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों के स्थायी निवास देवप्रयाग अवश्य आते थे।
13वें आम चुनाव के दौरान आयोजित सभा में हर वक्ता ने अपने संबोधन में मानवेंद्र शाह को खुश करने के लिए भाजपा सरकार आने पर उन्हें मंत्री बनाए जाने की पैरवी की थी। उन्हें लगता था कि महाराजा उनकी बात पर निश्चित ही खुश हो रहे होंगे। हालांकि, इसका उलटा प्रभाव हुआ।
1946 में टिहरी रियासत की बागडोर संभाली थी
मानवेंद्र शाह टिहरी रियासत के अंतिम शासक थे। 1946 में महाराजा नरेंद्र शाह ने उन्हें टिहरी रियासत की बागडोर सौंपी थी। इस पद पर वह टिहरी राज्य के भारत में विलय होने तक यानी 31 जुलाई 1949 तक रहे। टिहरी सीट की पहली सांसद महारानी कमलेंदुमति शाह रहीं। उनके बाद मानवेंद्र शाह 1957 में दूसरे सांसद चुने गए।