हरियाणा में पूनिया ने फेंका जीत का पासा, उपचुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ीं

हरियाणा के विधानसभा चुनाव परिणाम एक्जिट पोल से बिल्कुल उलट साबित हुए लेकिन राजस्थान की सियासत के लिए इन नतीजों में दिलचस्पी की कुछ और वजह भी है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि इन नतीजों का असर राजस्थान पर पड़ना तय है। इसकी वजह है राजस्थान बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष सतीश पूनिया, जो कि पिछले दो महीनों से हरियाणा में प्रभारी के तौर पर चुनावों की कमान संभाल रहे थे।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक हरियाणा की जीत के बाद पार्टी में पूनिया का कद बढ़ा है। अब महाराष्ट्र और झारखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए भी उन्हें संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। हरियाणा की इस जीत ने पूनिया को राजस्थान के शीर्ष नेताओं की कतार में सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है।
हार के बाद राजनीति से ब्रेक लेने वाले थे

एक समय था जब राजस्थान की राजनीति में सतीश पूनिया के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए थे। राजस्थान में विधानसभा चुनावों करारी हार के बाद सतीश पूनियां ने राजनीति से ब्रेक का ऐलान कर दिया था। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था… “चुनाव में हार-जीत एक सिक्के के दो पहलू होते हैं लेकिन आमेर की हार मेरे लिए सोचने पर मजबूर करने वाली है, यह एक आघात जैसी है, हमने सपने देखे थे कि आमेर इस बार रिवाज बदलेगा और हम मिलकर सरकार के माध्यम से कार्यकर्ताओं का सम्मान और जनता का बेहतरीन काम करके इसे आदर्श विधानसभा क्षेत्र बनाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह समय मेरे लिए कठिन परीक्षा की घड़ी जैसा है परंतु परिस्थितियों और मनोवैज्ञानिक रूप से मैं यह निर्णय करने के लिए मजबूर हूं कि मैं अब भविष्य में आमेर क्षेत्र के लोगों और कार्यकर्ताओं को सेवा और समय नहीं दे पाऊंगा।”

जाट चेहरे के रूप में दी जिम्मेदारी

सतीश पूनियां ने कड़ी मेहनत से राजस्थान में बीजेपी को जीत दिलाने के बाद हरियाणा में भी हैट्रिक लगाने में मदद की। हरियाणा की तरह राजस्थान में जाट राजनीति की बड़ी भूमिका है। सतीश पूनियां को संगठन रणनीतिकार के साथ जाट चेहरे के तौर पर हरियाणा में स्टार प्रचारक भी बनाया गया। इसका नतीजा यह रहा कि पार्टी जाटों के गढ़ में 7 नई सीटें जीतने में सफल रही है। पूनियां प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी मिलने के बाद लगातार एक्टिव रहे और तबीयत खराब होने के बावजूद वोटिंग के दिन चुनाव वॉर रूम पहुंचे।

सीएम ने भी की आधा दर्जन रैली

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी हरियाणा में आधा दर्जन रैलियां और जनसभाएं की थीं। इनमें समालखा, असंद, तोशन, लोहारू, इंद्र और राई में भजनलाल की जनसभाएं हुईं, जिनमें से 5 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। वहीं उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने भी हरियाणा में ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार किया था। हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक के बाद राजस्थान के इन दिग्गज नेताओं का कद और बढ़ गया है और आने वाले समय में इन नेताओं को अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

इधर हैरान करने वाले इन नतीजों पर पूनिया का कहना था कि भाजपा को कई लोगों ने अंडर एस्टीमेट किया लेकिन जनता साथ थी। उन्होंने कहा कि हमने लोकसभा चुनावों के बाद समीक्षा कर कमियों को दूर किया, रणनीति बना कर चुनाव लड़ा। आप जिन एक्जिट पोल की बात कर रहे हैं, वह कांग्रेस के एक्जिट होने का पोल था। हरियाणा की जनता हमेशा कांग्रेस के विपरीत रही है। हमारा स्लोगन नॉन स्टॉप था और जनता ने कांग्रेस के आगे फुल स्टॉप लगा दिया।

चुनावों में हार को लेकर कांग्रेस से कहां चूक हो गई ? 

इस सवाल के जवाब में पूनिया ने कहा कि कांग्रेस में इंटरनली फ्रेक्शन बहुत था। कांग्रेस हुड्डा, सुरजेवाला व शैलजा गुट में बंटी हुई थी। नतीजों से साफ है कि हरियाणा के लोग अब कांग्रेस को पसंद नहीं करते हैं। पार्टी ने एक अच्छी रणनीति के जरिए यह जीत हासिल की है। यह कार्यकर्ताओं के परिश्रम, शीर्ष नेतृत्व के निर्देश व जनता के आशीर्वाद की जीत है।

क्या जाट बनाम गैर जाट का मुद्दा भाजपा के लिए संजीवन साबित हुआ?

भाजपा सभी तबकों को साथ लेकर चलती है और सभी ने वोट दिया है। किसने ने कम और किसी ने ज्यादा। जहां कम वोट आने के दावे किए जा रहे थे, वहां भी भाजपा को अच्छी लीड मिली है और सीटें जीती हैं। लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए प्रत्याशियों का चयन चुनौती थी। ग्राउंड रिपोर्ट और प्रत्याशियों की जनता से जुड़ाव के आधार पर टिकट दिए गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *